Saturday 18 June 2016

नवनीत शरण, अमर उजाला/नई दिल्ली

Updated 11:01 मंगलवार, 7 जून 2016
Kashmir rail link project cost was hiked

कश्मीर रेलवेPC: PTI

राष्ट्रीय महत्व की महत्वपूर्ण योजनाओं में शुमार कश्मीर तक रेल संपर्क अभी तक अधूरा ही है। इसके लिए बनी उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक ( यूएसबीआरएल) परियोजना की लागत 1500 करोड़ रुपये से बढ़ कर 20 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है।  

आजादी के बाद रेलवे की सबसे चुनौतीपूर्ण योजना में शुमार यूएसबीआरएल प्रोजेक्ट अब तक लटका हुआ है। इसके तहत कटड़ा-काजीगुंड खंड को अभी पूरा किया जाना है। इस सेक्शन में काजीगुंड से बनिहाल तक तो प्रोजेक्ट पूरा कर लिया गया है, लेकिन, कटड़ा-बनिहाल तक 110 किलोमीटर की पट्टी अभी तक अधूरी है।

इसे 2007 में ही पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। संशोधित तिथि दिसंबर 2017 रखी गई थी जो अब बढ़कर 2020 हो गई है। इस पूरे प्रोजेक्ट को लेकर संसदीय लोक लेखा समिति ने कड़ी आपत्ति भी दर्ज की है।

नवनीत शरण/ अमर उजाला, नई दिल्ली

Updated 04:06 मंगलवार, 24 मई 2016
 केंद्र में राजग शासनकाल के दो साल पूरे होने वाले हैं। सरकार के सभी मंत्रालय अपनी-अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं। रेल मंत्रालय भी अपनी उपलब्धियां गिनाने में पीछे नहीं है। लेकिन रेल यात्री अभी भी कन्फर्म बर्थ नहीं मिलने, पैसेंजर ट्रेन में खड़े होकर सफर करने, खिड़की पर टिकट लेने की जद्दोजहद और जान हथेली पर रखकर यात्रा करने को मजबूर दिखाई पड़ते हैं। इस मामले में यात्री अभी भी अपने को ठगा महसूस करते हैं। हालांकि सफाई व्यवस्था, सोशल नेटवर्किंग साइट से परेशानी दूर होने, अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए मिले प्लेटफार्म, स्टेशनों पर वाई-फाई की सुविधा मिलने से खुश भी है।

यह परेशानी नहीं हुईं कम
कन्फर्म बर्थ आज भी परेशानी का सबब
रेलवे बजट की ज्यादातर घोषणाओं पर अमल तो शुरू हो गया है, लेकिन ट्रेनों में आम आदमी की समस्या कम नहीं हुई। मांग के अनुसार आरक्षित टिकट नहीं मिलना सबसे बड़ी परेशानी है। रेलवे का विजन 2020 तक आम आदमी के लंबे समय से चली आ रही आशा को पूरा करना है, जिसमें ट्रेनों में आरक्षित जगह मांग पर उपलब्ध कराना मुख्य है। तत्काल कोटा से भी यात्रियों को राहत नहीं मिली है।

ट्रेनों की सुस्त रफ्तार
बुलेट व सेमी हाई स्पीड ट्रेन की योजना ने गति तो पकड़ी लेकिन ट्रैक पर अभी भी ट्रेन रफ्तार नहीं पकड़ सकी। रेलवे का यह भी कहना है कि डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का निर्माण, जो 2019 तक होना है, इससे ट्रेनें समय पर चलने लगेगी। क्योंकि माल गाड़ी इस कॉरिडोर के निर्माण के बाद अलग पटरियों पर चली जाएंगी। रेलवे की इस लंबी योजना को लेकर जन प्रतिनिधि व सांसद से अपने-अपने क्षेत्र की जनता सवाल पूछ रही है। लोकल ट्रेन की रफ्तार के सुस्त होने के कारण भी यात्री परेशान रहते हैं।

नवनीत शरण/अमर उजाला,नई दिल्ली

Updated 02:52 बुधवार, 15 जून 2016
special electrical multiple unit train
अब ना केवल लंबी दूरी बल्कि कम दूरी की ट्रेनें भी सुविधायुक्त होंगी। कम दूरी की ट्रेनों में भी आप आराम से लेट कर यात्रा कर सकेंगे। बैठने के लिए भी शताब्दी ट्रेन की तरह ही चेयर कार की सुविधा होगी। 

रेलवे मंत्रालय ने आधुनिक इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट (ईएमयू) ट्रेन चलाने की योजना बनाई है।

नयी ईएमयू ट्रेन को आरामदायक सफर कराने के लिहाज से तैयार किया जा रहा है। कम दूरी की इस ट्रेन में थकान महसूस नहीं हो इसके लिए स्पेशल कोच की डिजाइन की जा रही है। आम तौर पर लंबी दूरी  की ट्रेन में ही स्लीपर कोच होते है, लेकिन नये ईएमयू ट्रेन में भी स्लीपर कोच जैसा ही तैयार किया जाएगा। इतना ही शताब्दी ट्रेन की तर्ज पर चेयर कार वाले कोच भी तैयार होंगे।

रेलवे का दावा है कि इन ट्रेन सेटो से यात्रा समय में कमी आएगी और इनका यात्रा अनुभव भी बेहतर होगा। रेलवे मंत्रालय के अधिकारिक सूत्रों के अनुसार जल्द ही 15 ऐसी ट्रेनें अति व्यस्त रूटों पर चला कर पॉयलट प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा।

कम दूरी की ट्रेन जिसे हर दस मिनट पर एक हॉल्ट या स्टेशन पर रूकती है, इस तरह की रूट पर ईएमयू ट्रेन चलाना फायदेमंद होगा क्योंकि यह ट्रेन तुरंत रफ्तार पकड़ लेते है। जबकि लोको को 100 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार पकडने के लिए 6 मिनट तक का वक्त लग जाते है।

ईएमयू ट्रेन चलने से औसत रफ्तार के साथ ट्रेन चलाई जा सकती है। जबकि पैसेंजर ट्रेन की बात करें तो इसकी औसत स्पीड  30 किलोमीटर प्रतिघंटे ही होती है। स्पीड बढ़ाने के लिए रेलवे कई पैसेंजर ट्रेन को मेनलाइन इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट (मेमू) में भी बदल रहा है। अभी तक आधा दर्जन लोको ट्रेन को मेमू में बदला गया है।

रेलवे अधकिकारियों के अनुसार  नई दिल्ली-लखनऊ-इलाहाबाद-वाराणी, कानपुर-गाजियाबाद के बीच इनमें से कुछ ट्रेनें चलाई जाएंगी। इस रूट पर सबसे अधिक ट्रैफिक जाम की समस्या रहती है। 

टीम डिजिटल/ अमर उजाला, दिल्ली

Updated 17:05 शुक्रवार, 17 जून 2016
Student who wins prize for designing waterless, odourless loo for railways
आप सुहाने सफर पर निकलें और ट्रेन में घुसते ही टॉयलेट से आती बदबू का प्रहार झेलना पड़े तो सारा मजा किरकिरा हो जाता है। भारतीय रेल की अच्छे से अच्छी गाड़ियों में टॉयलेट की समस्या आम है। ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क के लिए एक छात्र का डिजाइन सौगात लेकर आया है। विनोद एंथनी थॉमस मनीपाल विश्वविद्यालय के छात्र है। रेलवे के लिए विनोद का बनाया पानी और बदबू रहित शौचालय रेलवे को भा गया है।

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